चलते चलते साथी कोई बिछड़ा तो अफ़सोस हुआ ...
अक़दार-ए-कुहन हाथ से जाने नहीं देता ...
अफ़्साना दुहराने से क्या होता है ...
ये मिरे घर के तीन चार दरख़्त ...
हम जैसों का ख़याल किसी ने नहीं किया ...
होश आने के बा'द दूध पिया ...
गाड़ियों से न तेरी कोठियों से ...
दर-ए-हवस पे शराफ़त ने घुटने टेक दिए ...
बाग़ से मुत्तसिल है एक गली ...
वहशत में क्या शक है जी ...
वफ़ूर-ए-रहमत-ए-परवरदिगार होता था ...
उजड़े हुए रस्ते हम ...
तिरे बिछड़ने का दुख अपने ख़ानदान का दुख ...
रंगत चेहरा आँखें 'आरिज़ लब धुतकारेगा ...
नींद पलकों के किनारों पे धरी रहती है ...
क्यों तोड़ दिए जाते हैं समर कमज़ोर शजर की डालियों से ...
ख़ुद-साख़्ता सज़ा को जो हम चुन लिए गए ...
खिल उठे सुख के फूल चारों तरफ़ ...
फ़लक से उन को ख़ुदा के सलाम आते हैं ...
दिल मुलम्मा'-साज़ियों से भर गए ...