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न रंज-ए-हिजरत था और न शौक़-ए-सफ़र था दिल में
न रंज-ए-हिजरत था और न शौक़-ए-सफ़र था दिल में
कभी ये आँखें ख़ुद भी उड़ा करती थीं पतंग के साथ
कभी ये आँखें ख़ुद भी उड़ा करती थीं पतंग के साथ
जो कुछ इन आँखों ने देखा है मैं उस का क्या करूँ
जो कुछ इन आँखों ने देखा है मैं उस का क्या करूँ
इस रस्ते पर पीछे से इतनी आवाज़ें आईं 'जमाल'
इस रस्ते पर पीछे से इतनी आवाज़ें आईं 'जमाल'
दिन गुज़रते जा रहे हैं और हुजूम-ए-ख़ुश-गुमाँ
दिन गुज़रते जा रहे हैं और हुजूम-ए-ख़ुश-गुमाँ