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कुंज-ए-मोहब्बत
ये सुनसान रातें ये ठंडी हवाएँ ये फैली हुई तेरी यादों की ख़ुश्बू ...
ये माना हम ने ये दुनिया अनोखी है निराली है
ये माना हम ने ये दुनिया अनोखी है निराली है ...
वो हुस्न जिस को देख के कुछ भी कहा न जाए
वो हुस्न जिस को देख के कुछ भी कहा न जाए ...
पहले भी सहे हैं रंज बहुत पर ऐसी घड़ी कब आई है
पहले भी सहे हैं रंज बहुत पर ऐसी घड़ी कब आई है ...
नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए
नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए ...
लुट गया घर तो है अब सुब्ह कहीं शाम कहीं
लुट गया घर तो है अब सुब्ह कहीं शाम कहीं ...
क्या क़यामत है कि हम ख़ुद ही कहें ख़ुद ही सुनें
क्या क़यामत है कि हम ख़ुद ही कहें ख़ुद ही सुनें ...