पैमान-ए-वफ़ा
By khalilur-rahman-azmiFebruary 27, 2024
मेरे घर की ये दीवारें जैसे पी कर बैठी हैं
मेरे जलते जलते आँसू मेरे लहू की बरसातों को
मेरी तन्हाई के अंधेरे में आ आ कर हँसते हैं
नन्हे नन्हे कितने जुगनू मेरी भीगी पलकों के
बुझे दिये की लौ रह रह कर आधी आधी रातों को
अपनी गहरी नींद से जैसे चौंक उठती है बोल उठती है
आशाओं के सुंदर मुखड़े पर लाली सी आ जाती है
मुरझाए से नील-कँवल का और भी रूप निखर आता है
धीरे धीरे शीतल जल की लहरें साज़ उठाती हैं
गीतों की निर्मल धारा पर डोल उठती है जीवन-नय्या
हौले हौले बहती जाए बहती जाए चलती जाए
समय की नद्दी वो नद्दी है जो हर इक को पार लगाए
नद्दी के उस पार खड़े हैं मेरे बच्चे मेरे बाले
मेरे खेतों के सब मोती मेरे ख़ज़ाने के रखवाले
मेरी तरफ़ सब हाथ उठा कर जैसे ख़ुशी से चिल्लाते हैं
आओ आओ कितनी देर से राह तुम्हारी देख रहे हैं
तुम को आज के दिन सूरज की किरनों में नहलाएँगे
आज हम अपनी सालगिरह का पहला जश्न मनाएँगे
मेरे जलते जलते आँसू मेरे लहू की बरसातों को
मेरी तन्हाई के अंधेरे में आ आ कर हँसते हैं
नन्हे नन्हे कितने जुगनू मेरी भीगी पलकों के
बुझे दिये की लौ रह रह कर आधी आधी रातों को
अपनी गहरी नींद से जैसे चौंक उठती है बोल उठती है
आशाओं के सुंदर मुखड़े पर लाली सी आ जाती है
मुरझाए से नील-कँवल का और भी रूप निखर आता है
धीरे धीरे शीतल जल की लहरें साज़ उठाती हैं
गीतों की निर्मल धारा पर डोल उठती है जीवन-नय्या
हौले हौले बहती जाए बहती जाए चलती जाए
समय की नद्दी वो नद्दी है जो हर इक को पार लगाए
नद्दी के उस पार खड़े हैं मेरे बच्चे मेरे बाले
मेरे खेतों के सब मोती मेरे ख़ज़ाने के रखवाले
मेरी तरफ़ सब हाथ उठा कर जैसे ख़ुशी से चिल्लाते हैं
आओ आओ कितनी देर से राह तुम्हारी देख रहे हैं
तुम को आज के दिन सूरज की किरनों में नहलाएँगे
आज हम अपनी सालगिरह का पहला जश्न मनाएँगे
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