इन चराग़ों में रौशनी ठहरे

By abid-barelviDecember 2, 2024
इन चराग़ों में रौशनी ठहरे
तू जो आए तो ज़िंदगी ठहरे
तुझ को देखें तो ख़्वाब चलते हैं
बुझती आँखों में ताज़गी ठहरे


तेरे चेहरे पे ख़्वाब से मंज़र
तेरी पलकों पे रागनी ठहरे
कितनी पुर-नूर हैं तिरी आँखें
जैसे रातों में चाँदनी ठहरे


हर-सू जलते हैं शाम से जुगनू
तू जो यादों में जाँ मिरी ठहरे
दिल के सहरा में हिज्र का मौसम
रात जैसे कि बेबसी ठहरे


तुझ में 'आबिद' ये कौन रहता है
जिस के रहने से ख़ुसरवी ठहरे
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