'अज़्मत-ए-अहल-ए-जुनूँ पास-ए-वफ़ा रक्खा है

By ahmar-nadeemNovember 10, 2024
'अज़्मत-ए-अहल-ए-जुनूँ पास-ए-वफ़ा रक्खा है
चाक-ए-दामन को रफ़ूगर से बचा रक्खा है
दिल के पहलू में कोई शम' जला रक्खी है
सीना-ए-शौक़ को परवाना बना रक्खा है


फ़ित्ना-ए-क़ामत-ए-ज़ेबा की हिकायत मत पूछ
रोज़-ए-महशर से परे हश्र उठा रक्खा है
मिदहत-ए-ज़िल्ल-ए-इलाही नहीं होगी हम से
हम ने इंकार का मे'यार बचा रक्खा है


मर्हबा शोख़ी-ओ-'अय्यारी-ए-मा'शूक़ 'नदीम'
'इश्क़ को हुस्न के पर्दे में छुपा रक्खा है
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