हुस्न-ए-जानाँ
By noman-badrFebruary 28, 2024
तू कि शहकार-ए-सन्ना'-ए-हर-अव्वलीं
तू बयाँ में नहीं दस्तरस में नहीं
हुस्न काफ़िर तिरा आँख तौबा-शिकन
दाव पर लग गए जान-ओ-ईमान भी
तू दलील-ए-सहर शम'-ए-बहर-ओ-बर
राह-ए-ईमान भी रंग-ए-विज्दान भी
तेरी आँखों में दैर-ओ-हरम क़ैद है
जाम-ए-गुलफ़ाम क्या जाम-ए-जम क़ैद है
गाहे रंग-ए-ग़िलाफ़-ए-हरम हो गईं
गाहे रंग-ए-हिना दम-ब-दम हो गईं
गाहे कितनों को भटका दिया राह से
गाहे ये मंज़िलों का 'अलम हो गईं
तेरी पलकें झुकीं चाँद ढलने लगे
शाम होने लगी ज़ख़्म जलने लगे
साहिरा फिर तिरा सेहर होने लगा
लोग गिरने लगे होश उड़ने लगे
तेरा रुख़्सार है चाँदनी की हया
दूध में जैसे सिंदूर घुलने लगा
तेरे रुख़्सार रंग-ए-शफ़क़ हो गए
या'नी ये शा'इरी के उफ़ुक़ हो गए
किस को तश्बीह दूँ इस्ति'आरा करूँ
लब को लब के लिए ही गवारा करूँ
होंट क्या आयतें हैं ये क़ुरआन की
जान हैं जान-ए-जाँ ये तिरी जान की
उन से छू लें तो अल्फ़ाज़ ख़ुशबू बनें
क़हक़हे नूर बन जाएँ जादू बनें
शबनमी पंखुड़ी पंखुड़ी हैं फ़क़त
और क्या मैं कहूँ ज़िंदगी हैं फ़क़त
सोचता हूँ तो कुछ सोचा जाता नहीं
हुस्न तेरा तो अब देखा जाता नहीं
या'नी 'जावेद-अख़्तर’ ने सच ही कहा
हुस्न-ए-जानाँ की ता'रीफ़ मुमकिन नहीं
हुस्न-ए-जानाँ की ता'रीफ़ मुमकिन नहीं
तू बयाँ में नहीं दस्तरस में नहीं
हुस्न काफ़िर तिरा आँख तौबा-शिकन
दाव पर लग गए जान-ओ-ईमान भी
तू दलील-ए-सहर शम'-ए-बहर-ओ-बर
राह-ए-ईमान भी रंग-ए-विज्दान भी
तेरी आँखों में दैर-ओ-हरम क़ैद है
जाम-ए-गुलफ़ाम क्या जाम-ए-जम क़ैद है
गाहे रंग-ए-ग़िलाफ़-ए-हरम हो गईं
गाहे रंग-ए-हिना दम-ब-दम हो गईं
गाहे कितनों को भटका दिया राह से
गाहे ये मंज़िलों का 'अलम हो गईं
तेरी पलकें झुकीं चाँद ढलने लगे
शाम होने लगी ज़ख़्म जलने लगे
साहिरा फिर तिरा सेहर होने लगा
लोग गिरने लगे होश उड़ने लगे
तेरा रुख़्सार है चाँदनी की हया
दूध में जैसे सिंदूर घुलने लगा
तेरे रुख़्सार रंग-ए-शफ़क़ हो गए
या'नी ये शा'इरी के उफ़ुक़ हो गए
किस को तश्बीह दूँ इस्ति'आरा करूँ
लब को लब के लिए ही गवारा करूँ
होंट क्या आयतें हैं ये क़ुरआन की
जान हैं जान-ए-जाँ ये तिरी जान की
उन से छू लें तो अल्फ़ाज़ ख़ुशबू बनें
क़हक़हे नूर बन जाएँ जादू बनें
शबनमी पंखुड़ी पंखुड़ी हैं फ़क़त
और क्या मैं कहूँ ज़िंदगी हैं फ़क़त
सोचता हूँ तो कुछ सोचा जाता नहीं
हुस्न तेरा तो अब देखा जाता नहीं
या'नी 'जावेद-अख़्तर’ ने सच ही कहा
हुस्न-ए-जानाँ की ता'रीफ़ मुमकिन नहीं
हुस्न-ए-जानाँ की ता'रीफ़ मुमकिन नहीं
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