ज़र्द मौसम की अज़िय्यत भी उठाने का नहीं
By mubashshir-saeedFebruary 27, 2024
ज़र्द मौसम की अज़िय्यत भी उठाने का नहीं
मैं दरख़्तों की जगह ख़ुद को लगाने का नहीं
अब तिरे साथ त'अल्लुक़ की गुज़रगाहों पर
वक़्त मुश्किल है मगर हाथ छुड़ाने का नहीं
क़र्या-ए-सब्ज़ से आती हुई पुर-कैफ़ हवा
ताक़ पर रक्खा मिरा दीप बुझाने का नहीं
सब्र का ग़ाज़ा मिरे 'इश्क़ की ज़ीनत ठहरा
सो मैं आँखों से कोई अश्क बहाने का नहीं
चल रहा था तो सभी लोग मिरे बाज़ू थे
गिर पड़ा हूँ तो कोई हाथ बढ़ाने का नहीं
मुझ को ये मीर-तक़ी-'मीर' बताते हैं 'स'ईद'
'इश्क़ करना है मगर जान से जाने का नहीं
मैं दरख़्तों की जगह ख़ुद को लगाने का नहीं
अब तिरे साथ त'अल्लुक़ की गुज़रगाहों पर
वक़्त मुश्किल है मगर हाथ छुड़ाने का नहीं
क़र्या-ए-सब्ज़ से आती हुई पुर-कैफ़ हवा
ताक़ पर रक्खा मिरा दीप बुझाने का नहीं
सब्र का ग़ाज़ा मिरे 'इश्क़ की ज़ीनत ठहरा
सो मैं आँखों से कोई अश्क बहाने का नहीं
चल रहा था तो सभी लोग मिरे बाज़ू थे
गिर पड़ा हूँ तो कोई हाथ बढ़ाने का नहीं
मुझ को ये मीर-तक़ी-'मीर' बताते हैं 'स'ईद'
'इश्क़ करना है मगर जान से जाने का नहीं
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