ज़ख़्म-ए-दिल पर गुलाब रख्खा है
By sabeensaifFebruary 28, 2024
ज़ख़्म-ए-दिल पर गुलाब रख्खा है
या कोई माहताब रख्खा है
ख़ुद को तक़्सीम कर के रिश्तों में
कैसा दिल का हिसाब रख्खा है
प्यार से बढ़ के कोई दुनिया में
मेरे रब ने 'अज़ाब रख्खा है
मेरी बे-ख़्वाब सी इन आँखों में
उस की चाहत का ख़्वाब रख्खा है
अपने हर इक सवाल में लिख कर
उस ने कोई जवाब रख्खा है
कर के सैराब सारे 'आलम को
नाम अपना सराब रख्खा है
ख़ास चश्म-ए-करम है रब की 'सबीन'
मुझ को अहल-ए-किताब रख्खा है
या कोई माहताब रख्खा है
ख़ुद को तक़्सीम कर के रिश्तों में
कैसा दिल का हिसाब रख्खा है
प्यार से बढ़ के कोई दुनिया में
मेरे रब ने 'अज़ाब रख्खा है
मेरी बे-ख़्वाब सी इन आँखों में
उस की चाहत का ख़्वाब रख्खा है
अपने हर इक सवाल में लिख कर
उस ने कोई जवाब रख्खा है
कर के सैराब सारे 'आलम को
नाम अपना सराब रख्खा है
ख़ास चश्म-ए-करम है रब की 'सबीन'
मुझ को अहल-ए-किताब रख्खा है
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