यूँ भी क्या सोने में तुझ को तोलता है कोई और
By rashid-ansarFebruary 28, 2024
यूँ भी क्या सोने में तुझ को तोलता है कोई और
जिस क़दर मैं चाहता हूँ चाहता है कोई और
मैं भला कैसे कहूँ अब शे'र उस की याद में
मेरी तन्हाई भी अब तो बाँटता है कोई और
मैं तिरी इस ज़ात से जितना भी कर लूँ इख़्तिलाफ़
मेरे अंदर तेरे हक़ में बोलता है कोई और
इस लिए भी देर से जाता हूँ अपने घर को मैं
घर का दरवाज़ा भी अब तो खोलता है कोई और
जागता था मैं किसी की याद में पहले पहल
रात भर मेरी जगह अब जागता है कोई और
ये कभी तेरे गुलाबी हाथ थे मेरे लिए
अब तिरा दस्त-ए-हिनाई चूमता है कोई और
मैं नशे में हूँ कि ये दुनिया है कुछ मदहोश सी
मैं बुलाता हूँ किसी को बोलता है कोई और
मेरी आँखों की तमन्ना थी तुझे देखा करूँ
आँख भर के तुझ को 'अन्सर देखता है कोई और
जिस क़दर मैं चाहता हूँ चाहता है कोई और
मैं भला कैसे कहूँ अब शे'र उस की याद में
मेरी तन्हाई भी अब तो बाँटता है कोई और
मैं तिरी इस ज़ात से जितना भी कर लूँ इख़्तिलाफ़
मेरे अंदर तेरे हक़ में बोलता है कोई और
इस लिए भी देर से जाता हूँ अपने घर को मैं
घर का दरवाज़ा भी अब तो खोलता है कोई और
जागता था मैं किसी की याद में पहले पहल
रात भर मेरी जगह अब जागता है कोई और
ये कभी तेरे गुलाबी हाथ थे मेरे लिए
अब तिरा दस्त-ए-हिनाई चूमता है कोई और
मैं नशे में हूँ कि ये दुनिया है कुछ मदहोश सी
मैं बुलाता हूँ किसी को बोलता है कोई और
मेरी आँखों की तमन्ना थी तुझे देखा करूँ
आँख भर के तुझ को 'अन्सर देखता है कोई और
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