ये कैसा शहर का मंज़र दिखाई देता है

By rizwan-aliFebruary 28, 2024
ये कैसा शहर का मंज़र दिखाई देता है
हर एक हाथ में पत्थर दिखाई देता है
ये किस गुनाह की पादाश पा रहे हैं हम
जो गर्दिशों में मुक़द्दर दिखाई देता है


किसी ने प्यार से कर ली है गुफ़्तुगू शायद
जो उस का चेहरा मुनव्वर दिखाई देता है
कभी शराब को भी जो हराम कहता था
अब उस के हाथ में साग़र दिखाई देता है


वफ़ा का 'अह्द निभाने की क्या क़सम खाई
वो चेहरा आज गुल-ए-तर दिखाई देता है
डुबा सका न मिरे आज ये सफ़ीने को
तो बे-क़रार समुंदर दिखाई देता है


उदासियों को यहाँ कौन रख गया 'रिज़वान'
फ़सुर्दा अब जो हर इक घर दिखाई देता है
34170 viewsghazalHindi