ये दुनिया अगर रश्क-ए-जन्नत न होती
By betab-amrohviFebruary 26, 2024
ये दुनिया अगर रश्क-ए-जन्नत न होती
हमें ज़िंदगी की ज़रूरत न होती
मुझे आप से गर 'अक़ीदत न होती
मोहब्बत फ़रेब-ए-मोहब्बत न होती
न होते अगर हम से ‘आसी जो मौला
तो क्या तेरी तौहीन-ए-रहमत न होती
भला कैसे मुमकिन था ये तुम ही कह दो
चले जाते तुम और क़यामत न होती
हमें ज़िंदगी की ज़रूरत न होती
मुझे आप से गर 'अक़ीदत न होती
मोहब्बत फ़रेब-ए-मोहब्बत न होती
न होते अगर हम से ‘आसी जो मौला
तो क्या तेरी तौहीन-ए-रहमत न होती
भला कैसे मुमकिन था ये तुम ही कह दो
चले जाते तुम और क़यामत न होती
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