यास-ओ-हसरत की ज़र्ब कारी है

By irfan-aazmiFebruary 6, 2024
यास-ओ-हसरत की ज़र्ब कारी है
हर तबस्सुम में बे-क़रारी है
वक़्त से कोई बच नहीं सकता
वक़्त सब से बड़ा शिकारी है


इक मोहब्बत पे ज़ो'म था हम को
इन दिनों ये भी कारोबारी है
ज़ब्त कम है न कम ग़म-ए-दौराँ
बार के साथ बुर्दबारी है


'इश्क़ अपना मिज़ाज रखता है
बे-ख़ुदी है न होशियारी है
लेने वाला यहाँ तवंगर है
देने वाला यहाँ भिकारी है


धूल उड़ने लगी है आँखों में
शायद अब आँसुओं की बारी है
तंग-दस्ती में आप की यादें
क़हत में जैसे बूँद बारी है


किस ने तोड़ा है दिल तिरा 'इरफ़ान'
क्यों तबी'अत में इंकिसारी है
28331 viewsghazalHindi