यहाँ यूँ ही नहीं पहुँचा हूँ मैं
By fahmi-badayuniFebruary 6, 2024
यहाँ यूँ ही नहीं पहुँचा हूँ मैं
मुसलसल रात दिन दौड़ा हूँ मैं
तिरी ज़ंजीर का हिस्सा हूँ मैं
रिहा हो भी नहीं सकता हूँ मैं
तुम्हारी ओट में जितना हूँ मैं
बस उतना ही नज़र आता हूँ मैं
तुम्हारे सामने बैठा हूँ मैं
यही तो सोच कर ज़िंदा हूँ मैं
डराता है ख़ुदा से जब कोई
ख़ुदा के पीछे छुप जाता हूँ मैं
परेशाँ धूप करती है मुझे
शिकायत चाँद से करता हूँ मैं
बहुत कुछ कहना पड़ता हो जहाँ
वहाँ पर कुछ नहीं कहता हूँ मैं
मना लेगी उसे मा'लूम है
अभी सच-मुच नहीं रूठा हूँ मैं
मुसलसल रात दिन दौड़ा हूँ मैं
तिरी ज़ंजीर का हिस्सा हूँ मैं
रिहा हो भी नहीं सकता हूँ मैं
तुम्हारी ओट में जितना हूँ मैं
बस उतना ही नज़र आता हूँ मैं
तुम्हारे सामने बैठा हूँ मैं
यही तो सोच कर ज़िंदा हूँ मैं
डराता है ख़ुदा से जब कोई
ख़ुदा के पीछे छुप जाता हूँ मैं
परेशाँ धूप करती है मुझे
शिकायत चाँद से करता हूँ मैं
बहुत कुछ कहना पड़ता हो जहाँ
वहाँ पर कुछ नहीं कहता हूँ मैं
मना लेगी उसे मा'लूम है
अभी सच-मुच नहीं रूठा हूँ मैं
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