वो बदन माहताब जैसा है
By rizwan-aliFebruary 28, 2024
वो बदन माहताब जैसा है
रौशनी के निसाब जैसा है
चाँद को ढक रहा है जो बादल
तेरे रुख़ पर नक़ाब जैसा है
मुझ को पढ़ने की तू इजाज़त दे
तेरा चेहरा किताब जैसा है
पी लिया जाम किस की आँखों से
नश्शा मुझ पर शराब जैसा है
मैं ये किस शहर में चला आया
लम्हा लम्हा 'अज़ाब जैसा है
रू-ए-जानाँ तो बे-मिसाली है
कैसे कह दूँ गुलाब जैसा है
ज़िक्र-ए-माज़ी का क्या करें 'रिज़वान'
ज़ेहन में अब ये ख़्वाब जैसा है
रौशनी के निसाब जैसा है
चाँद को ढक रहा है जो बादल
तेरे रुख़ पर नक़ाब जैसा है
मुझ को पढ़ने की तू इजाज़त दे
तेरा चेहरा किताब जैसा है
पी लिया जाम किस की आँखों से
नश्शा मुझ पर शराब जैसा है
मैं ये किस शहर में चला आया
लम्हा लम्हा 'अज़ाब जैसा है
रू-ए-जानाँ तो बे-मिसाली है
कैसे कह दूँ गुलाब जैसा है
ज़िक्र-ए-माज़ी का क्या करें 'रिज़वान'
ज़ेहन में अब ये ख़्वाब जैसा है
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