वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
By aalok-shrivastavApril 20, 2024
वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
अकेला जब भी होता हूँ मुझे घर याद आता है
मिरी बे-साख़्ता हिचकी मुझे खुल कर बताती है
तिरे अपनों को गाओं में तो अक्सर याद आता है
जो अपने पास हों उन की कोई क़ीमत नहीं होती
हमारे भाई को ही लो बिछड़ कर याद आता है
सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें
मगर जब चोट लगती है मुक़द्दर याद आता है
मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है
नवम्बर याद आता है दिसम्बर याद आता है
अकेला जब भी होता हूँ मुझे घर याद आता है
मिरी बे-साख़्ता हिचकी मुझे खुल कर बताती है
तिरे अपनों को गाओं में तो अक्सर याद आता है
जो अपने पास हों उन की कोई क़ीमत नहीं होती
हमारे भाई को ही लो बिछड़ कर याद आता है
सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें
मगर जब चोट लगती है मुक़द्दर याद आता है
मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है
नवम्बर याद आता है दिसम्बर याद आता है
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