उसी सहरा के हम भी हैं जहाँ दीवाने जाते हैं
By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
उसी सहरा के हम भी हैं जहाँ दीवाने जाते हैं
हक़ीक़त के त'आक़ुब में जहाँ अफ़्साने जाते हैं
दर-ओ-दीवार वाले तुम दरून-ए-ख़ाना वाले हम
सो तुम मस्जिद की जानिब जाओ हम मयख़ाने जाते हैं
उन्हें ये फ़िक्र उन के शह्र की तौसी' कैसे हो
मुझे तशवीश मेरे हाथ से वीराने जाते हैं
हमारा दश्त क्या सरसब्ज़ है आब-ए-नदामत से
कि सारे अहल-ए-शहर अक्सर वहीं पछताने जाते हैं
वो मिट्टी का बदन है या कोई जादू की पुड़िया है
उसी लम्हे नहीं होता जब उस को पाने जाते हैं
वहीं शायद कोई अगली शनासाई की महफ़िल हो
तो चल देते हैं हम भी जिस तरफ़ बेगाने जाते हैं
अँधेरी रात थी बारिश थी और मस्जिद का दरवाज़ा
तो देखा 'फ़रहत-एहसास' एक दम मस्ताने जाते हैं
हक़ीक़त के त'आक़ुब में जहाँ अफ़्साने जाते हैं
दर-ओ-दीवार वाले तुम दरून-ए-ख़ाना वाले हम
सो तुम मस्जिद की जानिब जाओ हम मयख़ाने जाते हैं
उन्हें ये फ़िक्र उन के शह्र की तौसी' कैसे हो
मुझे तशवीश मेरे हाथ से वीराने जाते हैं
हमारा दश्त क्या सरसब्ज़ है आब-ए-नदामत से
कि सारे अहल-ए-शहर अक्सर वहीं पछताने जाते हैं
वो मिट्टी का बदन है या कोई जादू की पुड़िया है
उसी लम्हे नहीं होता जब उस को पाने जाते हैं
वहीं शायद कोई अगली शनासाई की महफ़िल हो
तो चल देते हैं हम भी जिस तरफ़ बेगाने जाते हैं
अँधेरी रात थी बारिश थी और मस्जिद का दरवाज़ा
तो देखा 'फ़रहत-एहसास' एक दम मस्ताने जाते हैं
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