उम्मीद की नदी पे लगे बंद खुल गए
By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
उम्मीद की नदी पे लगे बंद खुल गए
जिस पर खुला न आप मिरे छंद खुल गए
मैदान-ए-'इश्क़ में मुझे फिर चोट लग गई
ज़ख़्मों से इंदिमाल के पैवंद खुल गए
बंद-ए-क़बा थे तंग बहुत ज़ेहन के कभी
हो कर तिरे ख़याल के पाबंद खुल गए
सुनते थे जिन की कम-सुख़नी की कहानियाँ
'अनहद' तुम्हारी शक्ल में क्या ‘नंद’ खुल गए
जिस पर खुला न आप मिरे छंद खुल गए
मैदान-ए-'इश्क़ में मुझे फिर चोट लग गई
ज़ख़्मों से इंदिमाल के पैवंद खुल गए
बंद-ए-क़बा थे तंग बहुत ज़ेहन के कभी
हो कर तिरे ख़याल के पाबंद खुल गए
सुनते थे जिन की कम-सुख़नी की कहानियाँ
'अनहद' तुम्हारी शक्ल में क्या ‘नंद’ खुल गए
47634 viewsghazal • Hindi