तुझे भुलाने की अब जुस्तुजू नहीं करते
By sabeensaifFebruary 28, 2024
तुझे भुलाने की अब जुस्तुजू नहीं करते
कि अब किसी से तिरी गुफ़्तुगू नहीं करते
वुजूद को मिरे मौजूदगी समझते हैं
वो ना-समझ जो मिरी आरज़ू नहीं करते
हैं मेहरबान शजर किस क़दर कि हो के ख़फ़ा
कभी वो फूलों को बे-रंग-ओ-बू नहीं करते
जो अपने 'इश्क़ को ख़ुद में समाए फिरते हैं
तलाश फिर वो उसे कू-ब-कू नहीं करते
वो जिन को पास हो अपने घरों की हुर्मत का
किसी को वो कभी बे-आबरू नहीं करते
रुमूज़-ए-‘इश्क़ जो इक बार जान लेते हैं
किसी के दिल को कभी वो लहू नहीं करते
नमाज़ ग़ज़लों की मेरी अदा नहीं होती
जो हर्फ़ नाम से तेरे वुज़ू नहीं करते
कि अब किसी से तिरी गुफ़्तुगू नहीं करते
वुजूद को मिरे मौजूदगी समझते हैं
वो ना-समझ जो मिरी आरज़ू नहीं करते
हैं मेहरबान शजर किस क़दर कि हो के ख़फ़ा
कभी वो फूलों को बे-रंग-ओ-बू नहीं करते
जो अपने 'इश्क़ को ख़ुद में समाए फिरते हैं
तलाश फिर वो उसे कू-ब-कू नहीं करते
वो जिन को पास हो अपने घरों की हुर्मत का
किसी को वो कभी बे-आबरू नहीं करते
रुमूज़-ए-‘इश्क़ जो इक बार जान लेते हैं
किसी के दिल को कभी वो लहू नहीं करते
नमाज़ ग़ज़लों की मेरी अदा नहीं होती
जो हर्फ़ नाम से तेरे वुज़ू नहीं करते
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