तिरे जलवों ने सीखा है नज़र का पासबाँ हो कर

By bishan-dayal-shad-dehlviFebruary 26, 2024
तिरे जलवों ने सीखा है नज़र का पासबाँ हो कर
'अयाँ होना निहाँ हो कर निहाँ होना 'अयाँ हो कर
त'अज्जुब है नसीब-ए-‘इश्क़ की रूह-ए-रवाँ हो कर
वो क्यों ज़ुल्मत पे हावी हैं निगाहों से निहाँ हो कर


अगर सय्याद ने देखा कभी कुछ मेहरबाँ हो कर
तमन्ना रह गई तकती नसीब-ए-दुश्मनाँ हो कर
सितम ढाने लगी जब आरज़ू दिल की जवाँ हो कर
रही आठों पहर वहशत मोहब्बत की ‘इनाँ हो कर


बुतान-ए-शो'ला-रू की सेह्र-सामानी का क्या कहना
ख़ुदाई कर रहे हैं जान-ए-मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ हो कर
तसव्वुर में लिए बैठे हैं जलवों की अमानत को
नज़र सब की ज़मीं पर आ गई है आसमाँ हो कर


नज़र का सैद हो जाना क़रीन-ए-‘अक़्ल था लेकिन
ख़बर क्या थी कि दिल रह जाएगा नज़्र-ए-बुताँ हो कर
मुसलसल बेवफ़ाई पर तो इक 'आलम है शैदाई
नहीं उन की न जाने क्या ग़ज़ब ढाएगी हाँ हो कर


बहर-सूरत मता'-ए-'शाद' है नैरंगी-ए-'आलम
ख़िज़ाँ छाई बहार हो कर बहार आई ख़िज़ाँ हो कर
55317 viewsghazalHindi