तिरे बग़ैर हूँ ज़िंदा मगर ये हालत है
By farooq-noorFebruary 6, 2024
तिरे बग़ैर हूँ ज़िंदा मगर ये हालत है
ये आती जाती हुई साँस भी अज़िय्यत है
मैं ज़िंदगानी के अब आख़िरी पड़ाव पे हूँ
कहाँ हो तुम कि तुम्हारी मुझे ज़रूरत है
तिरे बग़ैर भी इक रात जी के देख लिया
तिरे बग़ैर भी ये रात ख़ूबसूरत है
बदन के सारे तक़ाज़े तो हो गए पूरे
मगर अभी भी तुम्हारी मुझे ज़रूरत है
तिरे बग़ैर तो मुमकिन न था मिरा जीना
तिरे बग़ैर भी ज़िंदा हूँ मुझ को हैरत है
उसी की याद है अब 'नूर' मश्ग़ला अपना
वो एक शख़्स जिसे भूलने की 'आदत है
ये आती जाती हुई साँस भी अज़िय्यत है
मैं ज़िंदगानी के अब आख़िरी पड़ाव पे हूँ
कहाँ हो तुम कि तुम्हारी मुझे ज़रूरत है
तिरे बग़ैर भी इक रात जी के देख लिया
तिरे बग़ैर भी ये रात ख़ूबसूरत है
बदन के सारे तक़ाज़े तो हो गए पूरे
मगर अभी भी तुम्हारी मुझे ज़रूरत है
तिरे बग़ैर तो मुमकिन न था मिरा जीना
तिरे बग़ैर भी ज़िंदा हूँ मुझ को हैरत है
उसी की याद है अब 'नूर' मश्ग़ला अपना
वो एक शख़्स जिसे भूलने की 'आदत है
48752 viewsghazal • Hindi