तंग-नज़री में हर इक दाना की दानाई गई

By irfan-aazmiFebruary 6, 2024
तंग-नज़री में हर इक दाना की दानाई गई
हादसों के शहर में आँखों की बीनाई गई
फूल की ख़ुशबू गई शाख़ों की अंगड़ाई गई
बाग़बाँ ऐसे मिले गुलशन की रा'नाई गई


सीम-ओ-ज़र की कोख में पलते रहे फ़ित्ने फ़साद
मुफ़लिसी हर दौर में सूली पे लटकाई गई
छोटी छोटी बात पे होने लगीं ख़ूँ-रेज़ियाँ
हिल्म बंदा-परवरी शान-ए-शकेबाई गई


मेरी सच्चाई पे 'आदिल को न आएगा यक़ीन
इस 'अदालत में बहुत झूटी क़सम खाई गई
जब नज़र बदली तो दिल भी हो गया कोताह-बीं
दर्द की वुस'अत गई ज़ख़्मों की गहराई गई


जाग उठे इंसान का सोया हुआ शायद ज़मीर
सुब्ह-ए-नौ इस आरज़ू में बार बार आई गई
क़ौम-ओ-मिल्लत के लिए 'इरफ़ान' क्या करते जिहाद
ज़र ज़मीं के वास्ते सारी तवानाई गई


41639 viewsghazalHindi