सुकून-ए-ज़ीस्त भी खोना कोई मज़ाक़ नहीं
By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
सुकून-ए-ज़ीस्त भी खोना कोई मज़ाक़ नहीं
ग़ज़ल में दर्द पिरोना कोई मज़ाक़ नहीं
ये दिल निकाल के रखना तू पहले काग़ज़ पर
फिर आँसुओं से भिगोना कोई मज़ाक़ नहीं
किसी की नींद उड़ाना तो फिर भी आसाँ है
मगर सुकून से सोना कोई मज़ाक़ नहीं
सफ़र हयात का चलना है जैसे शो'लों पर
ग़मों के बोझ को ढोना कोई मज़ाक़ नहीं
लहू तमाम ही अश्कों में ढलता जाता है
किसी की याद में रोना कोई मज़ाक़ नहीं
ख़ुशी नसीब में सब के लिखी नहीं होती
हसीन ख़्वाब संजोना कोई मज़ाक़ नहीं
लिया मज़ाक़ में जिस ने गया वो दुनिया से
कहा था मैं ने कोरोना कोई मज़ाक़ नहीं
ये शा'इरी है तमाशा नहीं कोई साहिब
लहू से आँख का धोना कोई मज़ाक़ नहीं
नक़ाब ओढ़ ले कोई 'नज़र' शराफ़त का
मगर शरीफ़ भी होना कोई मज़ाक़ नहीं
ग़ज़ल में दर्द पिरोना कोई मज़ाक़ नहीं
ये दिल निकाल के रखना तू पहले काग़ज़ पर
फिर आँसुओं से भिगोना कोई मज़ाक़ नहीं
किसी की नींद उड़ाना तो फिर भी आसाँ है
मगर सुकून से सोना कोई मज़ाक़ नहीं
सफ़र हयात का चलना है जैसे शो'लों पर
ग़मों के बोझ को ढोना कोई मज़ाक़ नहीं
लहू तमाम ही अश्कों में ढलता जाता है
किसी की याद में रोना कोई मज़ाक़ नहीं
ख़ुशी नसीब में सब के लिखी नहीं होती
हसीन ख़्वाब संजोना कोई मज़ाक़ नहीं
लिया मज़ाक़ में जिस ने गया वो दुनिया से
कहा था मैं ने कोरोना कोई मज़ाक़ नहीं
ये शा'इरी है तमाशा नहीं कोई साहिब
लहू से आँख का धोना कोई मज़ाक़ नहीं
नक़ाब ओढ़ ले कोई 'नज़र' शराफ़त का
मगर शरीफ़ भी होना कोई मज़ाक़ नहीं
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