सुब्ह आता हूँ यहाँ और शाम हो जाने के बा'द

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
सुब्ह आता हूँ यहाँ और शाम हो जाने के बा'द
लौट जाता हूँ मैं घर नाकाम हो जाने के बा'द
ढाँप देते हैं हवस को 'इश्क़ की पोशाक में
लोग सारे शहर में बदनाम हो जाने के बा'द


इक हुजूम-ए-याद होगा इन गली-कूचों के बीच
देखो शह्र-ए-दिल की रौनक़ शाम हो जाने के बा'द
याद करने के सिवा अब कर भी क्या सकते हैं हम
भूल जाने में तुझे नाकाम हो जाने के बा'द


ख़ुद जिसे मेहनत मशक़्क़त से बनाता हूँ 'जमाल'
छोड़ देता हूँ वो रस्ता 'आम हो जाने के बा'द
86382 viewsghazalHindi