शे'रों में अपना दर्द रक़म कर नहीं सके
By hamza-bilalFebruary 26, 2024
शे'रों में अपना दर्द रक़म कर नहीं सके
या'नी शुमार अपने अलम कर नहीं सके
मेरी तबाहियों पे हैं मातम-कुनाँ सभी
इक आप हैं जो आँख भी नम कर नहीं सके
हम से मुनाफ़िक़ों ने कहा साथ में रहो
हम अपनी ज़ात पर ये सितम कर नहीं सके
कहने को शे'र हम ने हज़ारों कहे मगर
तुम को किसी ख़याल में ज़म कर नहीं सके
'हमज़ा-बिलाल' आप से उम्मीद है बहुत
वो कीजिए जो अहल-ए-क़लम कर नहीं सके
या'नी शुमार अपने अलम कर नहीं सके
मेरी तबाहियों पे हैं मातम-कुनाँ सभी
इक आप हैं जो आँख भी नम कर नहीं सके
हम से मुनाफ़िक़ों ने कहा साथ में रहो
हम अपनी ज़ात पर ये सितम कर नहीं सके
कहने को शे'र हम ने हज़ारों कहे मगर
तुम को किसी ख़याल में ज़म कर नहीं सके
'हमज़ा-बिलाल' आप से उम्मीद है बहुत
वो कीजिए जो अहल-ए-क़लम कर नहीं सके
49216 viewsghazal • Hindi