शब-ए-ग़ुर्बत में जो ख़ुशबू-ए-वतन पास आई

By khursheed-rizviFebruary 27, 2024
शब-ए-ग़ुर्बत में जो ख़ुशबू-ए-वतन पास आई
देर तक साँस नहीं सिर्फ़ तिरी बास आई
जो नविश्तों में मता’-ए-दो-जहाँ बटती थी
मेरे हिस्से में यही शिद्दत-ए-एहसास आई


कोई उम्मीद है मुझ को न कोई अंदेशा
आस आई मिरे दिल में न कभी यास आई
जब खुला साँस लिया है महक उट्ठा है मशाम
ये मिरे हाथ 'अजब दौलत-ए-अन्फ़ास आई


जब भी आई है कभी उस निगह-ए-नाज़ की याद
शीशा-ए-दिल के लिए सूरत-ए-अल्मास आई
तू इसी कुलबा-ए-अहज़ाँ में पड़ा रह ख़ुर्शीद
तुझ को कब सोहबत-ए-अबना-ए-ज़माँ रास आई


57456 viewsghazalHindi