सहज ही दम-ब-दम आहिस्ता आहिस्ता
By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
सहज ही दम-ब-दम आहिस्ता आहिस्ता
बिछड़ जाएँगे हम आहिस्ता आहिस्ता
भुलाना चाहते हैं जल्द ही उस को
मगर चढ़ती है रम आहिस्ता आहिस्ता
बहुत पहले से महव-ए-रक़्स होते हैं
पकड़ते हैं रिदम आहिस्ता आहिस्ता
नहीं बे-सब्र होने से नहीं होगा
रवाँ होगा ये नम आहिस्ता आहिस्ता
दु'आएँ वो जो इन होंठों पे होती हैं
असर करती हैं कम आहिस्ता आहिस्ता
इक उस की ज़ुल्फ़ और अपनी तबी'अत के
खुलेंगे पेच-ओ-ख़म आहिस्ता आहिस्ता
मैं ठहरा आबला-पा कुछ तो मेरा सोच
सुबुक-पा हम-क़दम आहिस्ता आहिस्ता
बिछड़ जाएँगे हम आहिस्ता आहिस्ता
भुलाना चाहते हैं जल्द ही उस को
मगर चढ़ती है रम आहिस्ता आहिस्ता
बहुत पहले से महव-ए-रक़्स होते हैं
पकड़ते हैं रिदम आहिस्ता आहिस्ता
नहीं बे-सब्र होने से नहीं होगा
रवाँ होगा ये नम आहिस्ता आहिस्ता
दु'आएँ वो जो इन होंठों पे होती हैं
असर करती हैं कम आहिस्ता आहिस्ता
इक उस की ज़ुल्फ़ और अपनी तबी'अत के
खुलेंगे पेच-ओ-ख़म आहिस्ता आहिस्ता
मैं ठहरा आबला-पा कुछ तो मेरा सोच
सुबुक-पा हम-क़दम आहिस्ता आहिस्ता
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