सद-चाक गरेबाँ लिए निकले हो कहाँ को
By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
सद-चाक गरेबाँ लिए निकले हो कहाँ को
परखूँ तो ज़रा एक रफ़ूगर की ज़बाँ को
इक दिल था मुझे याद है महसूस किया था
इक बार तसल्ली से तो सीना मिरा झाँको
नम-दीदा ब-मुश्किल हो दुख इतना ही लगा है
मैं खोल न दूँ ज़ब्त मुझे कम नहीं आँ को
इक कोह को पहले था पिघलने ही से मतलब
दरकार है इक राह भी अब आब-ए-रवाँ को
अव्वल तो ये इक नक़्ल है और नक़्ल भी भोंडी
क्या और बताऊँ तिरे अंदाज़-ए-बयाँ को
परखूँ तो ज़रा एक रफ़ूगर की ज़बाँ को
इक दिल था मुझे याद है महसूस किया था
इक बार तसल्ली से तो सीना मिरा झाँको
नम-दीदा ब-मुश्किल हो दुख इतना ही लगा है
मैं खोल न दूँ ज़ब्त मुझे कम नहीं आँ को
इक कोह को पहले था पिघलने ही से मतलब
दरकार है इक राह भी अब आब-ए-रवाँ को
अव्वल तो ये इक नक़्ल है और नक़्ल भी भोंडी
क्या और बताऊँ तिरे अंदाज़-ए-बयाँ को
79230 viewsghazal • Hindi