रही मेरी शायद दु'आ निस्फ़ से कम
By khayal-laddakhiFebruary 27, 2024
रही मेरी शायद दु'आ निस्फ़ से कम
मिला मुझ को जो कुछ मिला निस्फ़ से कम
ये राह-ए-मोहब्बत है तौबा कि इस में
मैं गिर कर उठा पर उठा निस्फ़ से कम
तलाश उन की अब तक रही है अधूरी
वो जिन को मिला है ख़ुदा निस्फ़ से कम
नहीं कुछ बुरा कर सका उस का तूफ़ाँ
बुझी शम' जब थी हवा निस्फ़ से कम
तिरे रू-ब-रू ले के आई जो क़िस्मत
मैं लगने लगा बा-ख़ुदा निस्फ़ से कम
कुछ ऐसे गुज़ारी तिरे इस जहाँ में
कहा निस्फ़ से कम सुना निस्फ़ से कम
मोहब्बत 'इबादत ख़ुमारी शिकायत
'ख़याल' आप की हर अदा निस्फ़ से कम
मिला मुझ को जो कुछ मिला निस्फ़ से कम
ये राह-ए-मोहब्बत है तौबा कि इस में
मैं गिर कर उठा पर उठा निस्फ़ से कम
तलाश उन की अब तक रही है अधूरी
वो जिन को मिला है ख़ुदा निस्फ़ से कम
नहीं कुछ बुरा कर सका उस का तूफ़ाँ
बुझी शम' जब थी हवा निस्फ़ से कम
तिरे रू-ब-रू ले के आई जो क़िस्मत
मैं लगने लगा बा-ख़ुदा निस्फ़ से कम
कुछ ऐसे गुज़ारी तिरे इस जहाँ में
कहा निस्फ़ से कम सुना निस्फ़ से कम
मोहब्बत 'इबादत ख़ुमारी शिकायत
'ख़याल' आप की हर अदा निस्फ़ से कम
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