पहुँचेगा मोहब्बत का यूँ अंजाम कहाँ तक

By rana-khalid-mahmood-qaiserFebruary 28, 2024
पहुँचेगा मोहब्बत का यूँ अंजाम कहाँ तक
मुझ पर वो लगाते रहे इल्ज़ाम कहाँ तक
मंज़िल भी नज़र आने लगी आगे ही आगे
दो गाम चलूँ और वो दो गाम कहाँ तक


हम गिर्या-ए-शबनम की तरफ़ देख रहे हैं
कलियों के तबस्सुम का है पैग़ाम कहाँ तक
हम बादा-ए-उल्फ़त हैं सो हाथों से हमारे
छीनेगा मोहब्बत के कोई जाम कहाँ तक


ये कोई बता सकता नहीं है कभी 'क़ैसर'
मा'लूम नहीं हिज्र की है शाम कहाँ तक
82675 viewsghazalHindi