पहले दरिया से सहरा हो जाता हूँ
By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
पहले दरिया से सहरा हो जाता हूँ
रोते रोते फिर दरिया हो जाता हूँ
तन्हाई में इक महफ़िल सी रहती है
महफ़िल में जा कर तन्हा हो जाता हूँ
उस के हुस्न के सामने तुम अपनी जानो
मैं तो बिल्कुल ही अंधा हो जाता हूँ
जिस्म पे जादू कर देती है वो आग़ोश
मैं धीरे धीरे बच्चा हो जाता हूँ
ख़ूब जुनूँ करता हूँ जब होता हूँ दुखी
इस पागलपन में अच्छा हो जाता हूँ
ऐसी रवाँ होती है वस्ल में अबजद-ए-जिस्म
एक अलिफ़ चलता हूँ या हो जाता हूँ
ख़ाक-ए-रवाँ हूँ मरता हूँ इक जानिब से
दूसरी जानिब से पैदा हो जाता हूँ
जाने क्या होता है शा'इरी करते वक़्त
बिल्कुल ‘फ़रहत-एहसासा’ हो जाता हूँ
रोते रोते फिर दरिया हो जाता हूँ
तन्हाई में इक महफ़िल सी रहती है
महफ़िल में जा कर तन्हा हो जाता हूँ
उस के हुस्न के सामने तुम अपनी जानो
मैं तो बिल्कुल ही अंधा हो जाता हूँ
जिस्म पे जादू कर देती है वो आग़ोश
मैं धीरे धीरे बच्चा हो जाता हूँ
ख़ूब जुनूँ करता हूँ जब होता हूँ दुखी
इस पागलपन में अच्छा हो जाता हूँ
ऐसी रवाँ होती है वस्ल में अबजद-ए-जिस्म
एक अलिफ़ चलता हूँ या हो जाता हूँ
ख़ाक-ए-रवाँ हूँ मरता हूँ इक जानिब से
दूसरी जानिब से पैदा हो जाता हूँ
जाने क्या होता है शा'इरी करते वक़्त
बिल्कुल ‘फ़रहत-एहसासा’ हो जाता हूँ
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