नज़र के ज़ाविए अक्सर मिला के देखे हैं
By rana-khalid-mahmood-qaiserFebruary 28, 2024
नज़र के ज़ाविए अक्सर मिला के देखे हैं
उन्हें भी हुस्न के जल्वे दिखा के देखे हैं
जो आग तुम ने लगाई वो बुझ नहीं सकती
ग़म-ए-फ़िराक़ में आँसू बहा के देखे हैं
हमारा 'इश्क़ ग़म-ए-दिल का आइना निकला
निगाह-ए-हुस्न से पर्दे उठा के देखे हैं
हज़ार बार रक़ीबों ने रहगुज़र में तिरी
नुक़ूश-ए-पा-ए-मोहब्बत मिटा के देखे हैं
कुछ इस तरह से मोहब्बत की बात करते हो
न जाने कितने ही दिल में बसा के देखे हैं
हमारी ख़्वाब-ए-गिरानी तो कुछ नहीं होती
हसीन ख़्वाब भी ख़ुद को जगा के देखे हैं
किसी की राह-ए-मोहब्बत में आज तक 'क़ैसर'
चराग़-हा-ए-तमन्ना जला के देखे हैं
उन्हें भी हुस्न के जल्वे दिखा के देखे हैं
जो आग तुम ने लगाई वो बुझ नहीं सकती
ग़म-ए-फ़िराक़ में आँसू बहा के देखे हैं
हमारा 'इश्क़ ग़म-ए-दिल का आइना निकला
निगाह-ए-हुस्न से पर्दे उठा के देखे हैं
हज़ार बार रक़ीबों ने रहगुज़र में तिरी
नुक़ूश-ए-पा-ए-मोहब्बत मिटा के देखे हैं
कुछ इस तरह से मोहब्बत की बात करते हो
न जाने कितने ही दिल में बसा के देखे हैं
हमारी ख़्वाब-ए-गिरानी तो कुछ नहीं होती
हसीन ख़्वाब भी ख़ुद को जगा के देखे हैं
किसी की राह-ए-मोहब्बत में आज तक 'क़ैसर'
चराग़-हा-ए-तमन्ना जला के देखे हैं
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