नई हवाओं के हमराह चल रहा हूँ मैं
By farooq-noorFebruary 6, 2024
नई हवाओं के हमराह चल रहा हूँ मैं
बदल रहा है ज़माना बदल रहा हूँ मैं
ये कैसी आग है उस के बदन से उठती हुई
कि उस को देख रहा हूँ तो जल रहा हूँ मैं
उन्हें ये फ़िक्र नहीं है कि बुझ रहे हैं वो
उन्हें तो ख़ौफ़ है इस का कि जल रहा हूँ मैं
मिरे 'उरूज की जिस ने दु'आएँ माँगी थीं
ख़बर करो ज़रा उस को कि ढल रहा हूँ मैं
जो मेरे नाम से होता है अब शिकन-आलूद
कई बरस उसी माथे का बल रहा हूँ मैं
न मंज़िलों का पता है न रास्तों का सुराग़
बस इक तलाश है तेरी सो चल रहा हूँ मैं
अज़ल से 'नूर' है मुझ को सुकून-ए-दिल की तलाश
और इस तलाश में बस घर बदल रहा हूँ मैं
बदल रहा है ज़माना बदल रहा हूँ मैं
ये कैसी आग है उस के बदन से उठती हुई
कि उस को देख रहा हूँ तो जल रहा हूँ मैं
उन्हें ये फ़िक्र नहीं है कि बुझ रहे हैं वो
उन्हें तो ख़ौफ़ है इस का कि जल रहा हूँ मैं
मिरे 'उरूज की जिस ने दु'आएँ माँगी थीं
ख़बर करो ज़रा उस को कि ढल रहा हूँ मैं
जो मेरे नाम से होता है अब शिकन-आलूद
कई बरस उसी माथे का बल रहा हूँ मैं
न मंज़िलों का पता है न रास्तों का सुराग़
बस इक तलाश है तेरी सो चल रहा हूँ मैं
अज़ल से 'नूर' है मुझ को सुकून-ए-दिल की तलाश
और इस तलाश में बस घर बदल रहा हूँ मैं
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