न बच्चे जानते हैं और न माएँ जानती हैं

By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
न बच्चे जानते हैं और न माएँ जानती हैं
कि बस घर के चराग़ों को हवाएँ जानती हैं
बहुत से मुर्दा जिस्मों में भी होती है बहुत जान
इसे चिंताएँ जानें या चिताएँ जानती हैं


लिबासों के ज़बाँ होती तो उन से पूछते हम
बदन का हुस्न सिर्फ़ उस की क़बाएँ जानती हैं
जो है अर्धांगिनी खुलते कहाँ पूरे हम उस पर
हमें पूर्णांगिनी बस फ़ाहिशाएँ जानती हैं


हमारी बुत-परस्ती से ख़फ़ा कितनी है मस्जिद
ये बुत-ख़ाने की बाग़ी आस्थाएँ जानती हैं
यज़ीदी या हुसैनी किस तरफ़ की हैं ये रूहें
बदन में होने वाली कर्बलाएँ जानती हैं


तिरा दिल यूँ अचानक बुझ गया क्यों 'फ़रहत-एहसास'
तुझे तो शह्र की सब दिल-रुबाएँ जानती हैं
43733 viewsghazalHindi