मुझ को सरशार किए रखती है इक मानस-गंध
By farhat-ehsasFebruary 26, 2024
मुझ को सरशार किए रखती है इक मानस-गंध
मेरा मा'शूक़ परी-ज़ाद नहीं हो सकता
तेरी आज़ादी की तहरीक हवस-कारी है
बंदा-ए-‘इश्क़ तो आज़ाद नहीं हो सकता
मैं तो बस ख़्वाब दिखा देता हूँ ता'मीरों के
किसी ता'मीर की बुनियाद नहीं हो सकता
ख़ाक के चाक का रक़्क़ास है 'फ़रहत-एहसास'
चर्बा-ए-चेहरा-ए-अज्दाद नहीं हो सकता
मेरा मा'शूक़ परी-ज़ाद नहीं हो सकता
तेरी आज़ादी की तहरीक हवस-कारी है
बंदा-ए-‘इश्क़ तो आज़ाद नहीं हो सकता
मैं तो बस ख़्वाब दिखा देता हूँ ता'मीरों के
किसी ता'मीर की बुनियाद नहीं हो सकता
ख़ाक के चाक का रक़्क़ास है 'फ़रहत-एहसास'
चर्बा-ए-चेहरा-ए-अज्दाद नहीं हो सकता
44895 viewsghazal • Hindi