मुड़-मुड़ के किसे देखता था कोई नहीं था

By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
मुड़-मुड़ के किसे देखता था कोई नहीं था
छूटे हुए लोगों में मिरा कोई नहीं था
मा'लूम था हैं दस्तकें बच्चों की शरारत
दर खोल के भी देख लिया कोई नहीं था


बेकार ही डरते थे कि उस हिज्र-मकाँ में
आसेब थे आसेब-ज़दा कोई नहीं था
दुनिया थी तिरे गिर्द तिरे पेश कोई हो
मेरा तो कहीं तेरे सिवा कोई नहीं था


लौटा हूँ तही-दस्त जो बाज़ार से मैं ही
वो यूँ कि ख़रीदार-ए-वफ़ा कोई नहीं था
मैं चाहता हूँ दूसरी जानिब भी कोई हो
लौट आई है आवाज़ तो क्या कोई नहीं था


तस्वीर उदासी के हर इक रंग से भरपूर
तस्वीर में इक तेरी जगह कोई नहीं था
22039 viewsghazalHindi