माना कि सभी से ये छुपाई नहीं जाती
By prabhat-patelFebruary 28, 2024
माना कि सभी से ये छुपाई नहीं जाती
दौलत भी मगर ग़म की लुटाई नहीं जाती
हम आए बड़ी दूर से दीदार को तेरे
तुझ से ज़रा चिलमन भी हटाई नहीं जाती
दुनिया में मोहब्बत के सिवा और भी हैं काम
उल्फ़त के लिए नींद गँवाई नहीं जाती
इंसाफ़ हो कैसे कि 'अदालत में कभी जब
तस्वीर सदाक़त की दिखाई नहीं जाती
उस ने हैं सहे कितने सितम किस को है मा'लूम
सर पे यूँ ही दुनिया ये उठाई नहीं जाती
होता जो मिरे बस में मिटा देता उसे पर
हाथों की लकीर ऐसे मिटाई नहीं जाती
मज़हब का हसद पाल के रख्खा है सभी ने
पर आग से ये आग बुझाई नहीं जाती
दौलत भी मगर ग़म की लुटाई नहीं जाती
हम आए बड़ी दूर से दीदार को तेरे
तुझ से ज़रा चिलमन भी हटाई नहीं जाती
दुनिया में मोहब्बत के सिवा और भी हैं काम
उल्फ़त के लिए नींद गँवाई नहीं जाती
इंसाफ़ हो कैसे कि 'अदालत में कभी जब
तस्वीर सदाक़त की दिखाई नहीं जाती
उस ने हैं सहे कितने सितम किस को है मा'लूम
सर पे यूँ ही दुनिया ये उठाई नहीं जाती
होता जो मिरे बस में मिटा देता उसे पर
हाथों की लकीर ऐसे मिटाई नहीं जाती
मज़हब का हसद पाल के रख्खा है सभी ने
पर आग से ये आग बुझाई नहीं जाती
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