मै-कदा है ख़ुमार है थोड़ा
By khayal-laddakhiFebruary 27, 2024
मै-कदा है ख़ुमार है थोड़ा
ज़ीस्त का कारोबार है थोड़ा
मर्ग की ख़ुश-गुमानियाँ थोड़ी
ज़िंदगानी का भार है थोड़ा
मेरे आज़ार ढूँड लाए कोई
अब भी मुझ को क़रार है थोड़ा
वो भी तेरे सिपुर्द करता हूँ
ख़ुद पे जो इख़्तियार है थोड़ा
मौसम-ए-गुल का एक मुझ पे जुनूँ
उस पे रंग-ए-बहार है थोड़ा
मौत ले कर चली है अब मुझ को
जो तिरा है दयार है थोड़ा
टीस दिल की 'ख़याल' है थोड़ी
दर्द भी पाएदार है थोड़ा
ज़ीस्त का कारोबार है थोड़ा
मर्ग की ख़ुश-गुमानियाँ थोड़ी
ज़िंदगानी का भार है थोड़ा
मेरे आज़ार ढूँड लाए कोई
अब भी मुझ को क़रार है थोड़ा
वो भी तेरे सिपुर्द करता हूँ
ख़ुद पे जो इख़्तियार है थोड़ा
मौसम-ए-गुल का एक मुझ पे जुनूँ
उस पे रंग-ए-बहार है थोड़ा
मौत ले कर चली है अब मुझ को
जो तिरा है दयार है थोड़ा
टीस दिल की 'ख़याल' है थोड़ी
दर्द भी पाएदार है थोड़ा
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