महफ़िल तमाम रात ही यूँ तो सजी रही

By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
महफ़िल तमाम रात ही यूँ तो सजी रही
लेकिन तुम्हारे बा'द तुम्हारी कमी रही
कितने ही लोग साथ में चलते थे दूर तक
रिश्तों में तह सी धूल की लेकिन जमी रही


पछता रहा हूँ आज भी अपने गुनाह पर
इक बार झुक गई तो ये गर्दन झुकी रही
समझा रहे थे चाँद सितारे मुझे मगर
मुझ से ही मेरी जंग मुसलसल छिड़ी रही


मेरी नज़र थी पाक ये लहजा भी नर्म था
जब तक मिरे मिज़ाज में शाइस्तगी रही
फिरती थी मेरी ज़ीस्त किसी की तलाश में
जब तक मिरे वुजूद में तेरी कमी रही


48318 viewsghazalHindi