किसी भी बात का जब ए'तिबार मुश्किल है

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
किसी भी बात का जब ए'तिबार मुश्किल है
फिर ऐसे में यहाँ रहना तो यार मुश्किल है
कुछ और वुस'अतें दरकार हैं मोहब्बत को
विसाल-ओ-हिज्र पे दार-ओ-मदार मुश्किल है


कि मुस्कुराना भी पड़ता है फ़ातेहाना हमें
तिरे शिकस्ता-दिलों की हज़ार मुश्किल है
सर-ए-रियासत-ए-उल्फ़त निज़ाम है ऐसा
कोई मिले यहाँ बे-रोज़गार मुश्किल है


उधार ख़्वाब ख़रीदें और आँखें बेचें नक़्द
ये कारोबार है और कारोबार मुश्किल है
तू किन फ़ज़ाओं में है ऐ रक़ीब-ए-‘ऐश-पसंद
तिरी ख़िज़ाँ से हमारी बहार मुश्किल है


न उस को चूमें तो रस्ता भटकती हैं साँसें
और उस को चूमना भी बार बार मुश्किल है
अब उस को मिलने लगे 'आशिक़ान-ए-जुज़-वक़्ती
लिहाज़ा अपना शुमार-ओ-क़तार मुश्किल है


15094 viewsghazalHindi