ख़ूब बनता था वो बातों का धनी
By nand-kishore-anhadFebruary 27, 2024
ख़ूब बनता था वो बातों का धनी
पर वो इक बात जो कहते न बनी
वो मिरी ख़ामुशी कैसे तोड़े
उस के बस की ही कहाँ कोह-कनी
हम-सुख़न हों मिरे तुझ से कितने
आड़े आए न अगर कम-सुख़नी
उस की आँखों से लड़ाए कोई आँख
कोई टक्कर की करे तेग़ज़नी
वक़्त बे-वक़्त की घनघोर घटा
मेरे चेहरे पे तिरी ज़ुल्फ़ घनी
धुंद थी देखने वाली 'अनहद'
और उस धुंद से जब धूप छनी
पर वो इक बात जो कहते न बनी
वो मिरी ख़ामुशी कैसे तोड़े
उस के बस की ही कहाँ कोह-कनी
हम-सुख़न हों मिरे तुझ से कितने
आड़े आए न अगर कम-सुख़नी
उस की आँखों से लड़ाए कोई आँख
कोई टक्कर की करे तेग़ज़नी
वक़्त बे-वक़्त की घनघोर घटा
मेरे चेहरे पे तिरी ज़ुल्फ़ घनी
धुंद थी देखने वाली 'अनहद'
और उस धुंद से जब धूप छनी
41731 viewsghazal • Hindi