ख़राबा-ए-बाम-ओ-दर बहुत याद आ रहा है
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
ख़राबा-ए-बाम-ओ-दर बहुत याद आ रहा है
न जाने क्यों आज घर बहुत याद आ रहा है
भुला चुका हूँ जो रास्ता तय किया था मैं ने
किया नहीं जो सफ़र बहुत याद आ रहा है
वो साथ रहता था घर में तो ध्यान तक न आया
मगर सर-ए-रहगुज़र बहुत याद आ रहा है
उदास बैठे हैं घर की दीवार पर परिंदे
जो सहन में था शजर बहुत याद आ रहा है
लड़ाई में सारे वार ख़ाली गए थे जिस के
'जमाल' वो बे-हुनर बहुत याद आ रहा है
न जाने क्यों आज घर बहुत याद आ रहा है
भुला चुका हूँ जो रास्ता तय किया था मैं ने
किया नहीं जो सफ़र बहुत याद आ रहा है
वो साथ रहता था घर में तो ध्यान तक न आया
मगर सर-ए-रहगुज़र बहुत याद आ रहा है
उदास बैठे हैं घर की दीवार पर परिंदे
जो सहन में था शजर बहुत याद आ रहा है
लड़ाई में सारे वार ख़ाली गए थे जिस के
'जमाल' वो बे-हुनर बहुत याद आ रहा है
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