ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना

By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना
मैं तो लगता है कि बेकार ही दीवाना बना
मार ही डाला था साहिल के मरज़ ने मुझ को
एक सैलाब अचानक ही शिफ़ा-ख़ाना बना


जैसे परछाईं बनाई गई हर जिस्म के साथ
उसी अंदाज़ से हर शह्र का वीराना बना
मस्जिद-ए-जिस्म जिसे कोई नमाज़ी न मिला
वहीं इक शाम मिरी रूह का मय-ख़ाना बना


'फ़रहत-एहसास' से आती थी सदा-ए-गिर्या
आख़िर-ए-कार वो दुनिया का 'अज़ा-ख़ाना बना
76818 viewsghazalHindi