करता हूँ बिन तिरे यूँही अक्सर गुज़र-बसर

By qamar-malalFebruary 28, 2024
करता हूँ बिन तिरे यूँही अक्सर गुज़र-बसर
जैसे किसी ग़रीब की बे-ज़र गुज़र-बसर
दुनिया का हर त'आम मयस्सर है चंद को
और बा'ज़ की है नान-ए-जवीं पर गुज़र-बसर


पहले जो क़ैस के लिए उठते थे आज-कल
उन पत्थरों की है मिरे सर पर गुज़र-बसर
लगता है फिर क़रीब हैं फ़ाक़ों के रोज़-ओ-शब
होती है चंद रोज़ से बेहतर गुज़र-बसर


इक शख़्स ऐसा चाहिए मुझ को भी इन दिनों
जिस के बिना न हो सके पल-भर गुज़र-बसर
हर दिल सनम-कदा है यहाँ पर 'क़मर-मलाल'
करते हो तुम ही एक ख़ुदा पर गुज़र-बसर


73063 viewsghazalHindi