कहीं दीवार-मिसाल और कहीं दर जैसा था
By haris-bilalFebruary 6, 2024
कहीं दीवार-मिसाल और कहीं दर जैसा था
तेरी बाहों का वो हल्क़ा मुझे घर जैसा था
एक ख़दशा था जो यारों को मिला देता था
एक एहसास किसी राहगुज़र जैसा था
दूर जाता था तो बढ़ती थी मिरी बीनाई
वो जो इक शख़्स मिरी हद्द-ए-नज़र जैसा था
ज़िंदगी में तिरे हमराह गुज़ारा हुआ वक़्त
कोई पौदा था जो सहरा में शजर जैसा था
उस के दम से मिरे अपनों का भरम क़ाएम था
मेरा इक 'ऐब ज़माने में हुनर जैसा था
जैसे तूफ़ान का इम्कान समुंदर में रहे
मेरे दिल में तिरा होना किसी डर जैसा था
तेरी बाहों का वो हल्क़ा मुझे घर जैसा था
एक ख़दशा था जो यारों को मिला देता था
एक एहसास किसी राहगुज़र जैसा था
दूर जाता था तो बढ़ती थी मिरी बीनाई
वो जो इक शख़्स मिरी हद्द-ए-नज़र जैसा था
ज़िंदगी में तिरे हमराह गुज़ारा हुआ वक़्त
कोई पौदा था जो सहरा में शजर जैसा था
उस के दम से मिरे अपनों का भरम क़ाएम था
मेरा इक 'ऐब ज़माने में हुनर जैसा था
जैसे तूफ़ान का इम्कान समुंदर में रहे
मेरे दिल में तिरा होना किसी डर जैसा था
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