जुनूँ से 'उम्र की तरफ़ सरक रहा हूँ आज-कल

By ananth-faaniFebruary 25, 2024
जुनूँ से 'उम्र की तरफ़ सरक रहा हूँ आज-कल
क़दम बढ़ाने से भी पहले थक रहा हूँ आज-कल
घसीट लाओ मुझ को घर से और काम पर लगाओ
ज़रा ज़रा सी बात पर भड़क रहा हूँ आज-कल


क़फ़स से सच में 'इश्क़ ही न हो रहा हो ऐ ख़ुदा
समझ न आए इतना क्यों चहक रहा हूँ आज-कल
निशाना यार ख़ास है नहीं तुम्हारा इस लिए
तमाम जिस्म दिल बना धड़क रहा हूँ आज-कल


दुकान जो चलानी है सुख़न की क्या करूँ 'अनन्त'
ग़ज़ल का नाम दे के कुछ भी बक रहा हूँ आज-कल
73569 viewsghazalHindi