जो नेक राहों से हम भी गुज़र गए होते
By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
जो नेक राहों से हम भी गुज़र गए होते
ख़ला में आज यक़ीनन उभर गए होते
तुम्हारे साथ गुनाहों में होते शामिल तो
सज़ा-ए-मौत से पहले ही मर गए होते
तुम्हें ज़मीं की हक़ीक़त की भी ख़बर होती
बुलंदियों से अगर तुम उतर गए होते
शिकारियों की समझते न साज़िशें हम तो
हमारे पंख तो कब के कतर गए होते
रईस लोग थे महफ़िल में आप की शायद
तो हम ज़लील ही होते अगर गए होते
हमारे पास न आते तो कोई बात न थी
जो आ गए थे तो ले कर ख़बर गए होते
तलाश-ए-रिज़्क़ में खाते हैं धूल शहरों की
हुई थी शाम 'नज़र' हम भी घर गए होते
ख़ला में आज यक़ीनन उभर गए होते
तुम्हारे साथ गुनाहों में होते शामिल तो
सज़ा-ए-मौत से पहले ही मर गए होते
तुम्हें ज़मीं की हक़ीक़त की भी ख़बर होती
बुलंदियों से अगर तुम उतर गए होते
शिकारियों की समझते न साज़िशें हम तो
हमारे पंख तो कब के कतर गए होते
रईस लोग थे महफ़िल में आप की शायद
तो हम ज़लील ही होते अगर गए होते
हमारे पास न आते तो कोई बात न थी
जो आ गए थे तो ले कर ख़बर गए होते
तलाश-ए-रिज़्क़ में खाते हैं धूल शहरों की
हुई थी शाम 'नज़र' हम भी घर गए होते
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