जो गुफ़्तुगू से क़ौम का रहबर लगा मुझे
By rizwan-aliFebruary 28, 2024
जो गुफ़्तुगू से क़ौम का रहबर लगा मुझे
जब हम-सफ़र बना तो बहुत डर लगा मुझे
जब अश्क उन की आँख के पलकों तक आ गए
घर का हर एक गोशा मुनव्वर लगा मुझे
ले कर उदासियाँ जो तिरी बज़्म से उठा
बेहद उजाड़ शहर का मंज़र लगा मुझे
अपने वुजूद का लिया जब जब भी जाएज़ा
हर शख़्स अपनी ज़ात से बेहतर लगा मुझे
तर्क-ए-वफ़ा का जिस ने भी मुझ को दिया सबक़
हर ऐसा दोस्त राह का पत्थर लगा मुझे
था उस की बात-चीत में कैसा ये बाँकपन
आईना साफ़ था मगर आज़र लगा मुझे
'रिज़वान' उस के ख़्वाब बहुत ही हसीन थे
बहर-ए-वफ़ा का जो भी शनावर लगा मुझे
जब हम-सफ़र बना तो बहुत डर लगा मुझे
जब अश्क उन की आँख के पलकों तक आ गए
घर का हर एक गोशा मुनव्वर लगा मुझे
ले कर उदासियाँ जो तिरी बज़्म से उठा
बेहद उजाड़ शहर का मंज़र लगा मुझे
अपने वुजूद का लिया जब जब भी जाएज़ा
हर शख़्स अपनी ज़ात से बेहतर लगा मुझे
तर्क-ए-वफ़ा का जिस ने भी मुझ को दिया सबक़
हर ऐसा दोस्त राह का पत्थर लगा मुझे
था उस की बात-चीत में कैसा ये बाँकपन
आईना साफ़ था मगर आज़र लगा मुझे
'रिज़वान' उस के ख़्वाब बहुत ही हसीन थे
बहर-ए-वफ़ा का जो भी शनावर लगा मुझे
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