जितना भीतर से छटपटाता हूँ
By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
जितना भीतर से छटपटाता हूँ
उतना बाहर से मुस्कुराता हूँ
मुझ को अक्सर वही डराते हैं
जिन गुनाहों को भूल जाता हूँ
मुझ को देता है हौसला कोई
जब भी मुश्किल में ख़ुद को पाता हूँ
जब भी होती नई ग़ज़ल कोई
ख़ुद से पहले तुझे सुनाता हूँ
लोग गिनते हैं किर्चियाँ मेरी
इतने हिस्से में टूट जाता हूँ
जीत लेता हूँ मैं समुंदर को
और क़तरे से हार जाता हूँ
उतना बाहर से मुस्कुराता हूँ
मुझ को अक्सर वही डराते हैं
जिन गुनाहों को भूल जाता हूँ
मुझ को देता है हौसला कोई
जब भी मुश्किल में ख़ुद को पाता हूँ
जब भी होती नई ग़ज़ल कोई
ख़ुद से पहले तुझे सुनाता हूँ
लोग गिनते हैं किर्चियाँ मेरी
इतने हिस्से में टूट जाता हूँ
जीत लेता हूँ मैं समुंदर को
और क़तरे से हार जाता हूँ
93018 viewsghazal • Hindi