जीते रहना भी सज़ा हो जैसे

By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
जीते रहना भी सज़ा हो जैसे
जिस्म सूली पे टंगा हो जैसे
संग इतना ये मो'अत्तर क्यों है
तेरे हाथों ने छुआ हो जैसे


आशियाने में दरारें इतनी
ये भी मुफ़्लिस की क़बा हो जैसे
ऐसा लगता है दलीलें सुन कर
उस की पहली ही ख़ता हो जैसे


क़त्ल करतीं ये निगाहें तेरी
ज़हर इन में भी मिला हो जैसे
डूब जाता मैं यक़ीनन लेकिन
पार उस ने ही किया हो जैसे


मेरे क़ातिल की 'अजब हालत थी
मुझ से पहले वो मरा हो जैसे
23205 viewsghazalHindi